पुरानी कैसेट
पुरानी कैसेट
जीवन की कैसेट भी जाने राग कैसे गा रही
हम चलते जा रहे जिम्मेदारी की घिर्री चला रही
सुबह से शाम तक का एक ही सा गाना है
रुख बदल बदल कर हर बार वही सुनाना है।
अब तो उमर की टेप भी कुछ पुरानी हो गई
घिसते घिसते इतना घिसी बेसूरी होके खो गई
रोज चलते चलते कहीं भी उलझ जाती है
सुलझने का नाम ही नहीं, बस कट जाती है।
इधर वक्त भी पुराने टेप से तल्ख हो गया
कहता तो कुछ नही, बस बेरुख सा हो चला
आईपैड के जमाने में कौन इतनी मेहनत करे
कौन बार बार साइड चेंज करे और पुराने राग सुने।
अब तो रैप और हिप हॉप का ही जमाना है
गजलों और नज्मों का दर्द किसने जाना है
किसे फुरसत है जो पास बैठे और सुने इनको
करे रिवाइंड इन पुरानी हुई बेकार कैसेटों को।
कल इनका वक्त था जो आज किसी और का हो गया
एक दौर वो भी था, एक नया दौर हो गया
दुनिया हमेशा से रही बहुत सयानी है
पुराने को भूल जाती, ये दास्तां हर दौर की कहानी है
आज अर्श पे जो है वो कल फर्श पे आ जायेगा
पुराना जायेगा तभी तो नया दौर आएगा।।
आभार – नवीन पहल – ०२.११.२०२२ 🙏😎💐🌹
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Suryansh
07-Nov-2022 10:25 PM
बहुत ही सुंदर सृजन
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Khan
05-Nov-2022 03:46 PM
Shandar 🌸🙏
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Mahendra Bhatt
04-Nov-2022 02:49 PM
बहुत खूब
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